Friday 3 October 2014

नवदुर्गा

नव दुर्गा

भक्ति नवधा से समाहित, शुद्ध हो आराधना 
योग शुभ नवरात्रि मन की, पूर्ण करता कामना  
माँ बड़ी कल्याणकारी, यह जगत अवधारना 
आज आओ मिल करें हम, मात की अवगाहना 

अवतरण गिरिराज के घर, अम्ब का माना गया 
नाम माँ का शैलपुत्री, विश्व में जाना गया   
प्रथम दिन जग पूजता जिस, आदि माँ के रूप को 
शक्ति की संवाहिका माँ, पार्वती प्रतिरूप को  

नाथ शंकर हों हमारे, मात ने यह प्रण लिया  
आचरण में ला तपस्या, पूर्ण प्रण माँ ने किया  
रूप की जिस दूसरे दिन, जग करे है वंदना 
चारिणी हैं ब्रह्म की माँ, दक्ष की वह नंदना 

घंट जैसा चन्द्र आधा, शीश मैय्या धारती 
चन्द्र घंटा नाम तब से, मात निज साकारती  
चन्द्र घंटा की कृपा से, दिव्य हों अनुभूतियाँ 
द्वार माँ के हैं रमाते, संत योगी धूनियाँ 

माँ रचे ब्रह्मांड को जब, निज मधुर मुस्कान से 
मात कूष्मांडा जगत में, ज्ञात इस अभिधान से  
ध्यान माँ की धारणा से, कीर्ति जग यश वृद्धि हो 
रोग नाशे शोक हारे, आयु में अभिवृद्धि हो 

पाँचवा माँ रूप मोहक, स्कन्द धारे गोद में 
स्कन्द माता नाम ध्याते, भक्त सारे मोद में  
अर्चना माँ की सुगम अति, मोक्ष का पट खोलती 
जान महिमा सृष्टि सारी, मात की जय बोलती 

माँ दुलारी ऋषि कुमारी, कामदा कात्यायनी 
लग्न बाधा दूर करती, निर्मला वरदायनी  
रूप माँ का अति मनोहर, दुष्ट वृत्ति विनाशिनी 
माँ शुभग कल्याणकारी, भक्त धाम विहारिनी 

घोर श्यामा रौद्र वदना, सूर्य सम  तेजस्विनी 
काल जेती माँ कहाती, कालरात्रि तपस्विनी  
माँ कराली मुक्त केशी, मुंड नर गल धारिनी 
अभय मुद्रा माँ सुहाती, मात गर्दभ वाहिनी।८। 

गौर वर्णा माँ भवानी, श्वेत वृषभ वाहिनी 
कोमलांगी श्वेत वसना, माँ शुभग फलदायिनी  
पुण्य अर्जन मात दर्शन, पाप जीवन के जले 
माँ महागौरी कृपा से, कामना मन की फले।९। 

रूप नौवां सिद्धिदात्री, अष्ट सिद्धि प्रदायिनी 
मात कमलासीन सुखदा, भक्त कष्ट निवारिनी  
ध्यान माँ व्यवधान टाले, माँ सकल भय हारिणी  
सौम्य रूपा माँ अनूपा, माँ जगत उद्धारिणी१०  


Sunday 3 August 2014

वर्षा प्रेम सुधा बरसाये


अवनी अम्बर जीव चराचर
सुख पा सब हर्षाये   
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये
        
प्रियतम को आमंत्रित करने  
मेघ दूत बन आये   
नील गगन के मुख मंडल पर
श्वेत श्याम घन छाये
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये

बहे पवन मदमस्त झूम के  
पुरवा मन अलसाये
प्रेम मिलन संकेत सरित ने
अर्णव संग जताये  
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये

छैला दिनकर आज धरा से     
छिप छिप नैन लड़ाये  
प्रेम जलज बिहँसे इस जग में  
कभी न वह मुरझाये
वर्षा प्रेम सुधा बरसाये

Sunday 29 June 2014

समाज और बेटियाँ


 
ओपन बुक्स ऑनलाइन लाइव महोत्सव,
अंक-४४ में मेरी रचना
विषय – समाज और बेटियाँ
 छंद – गीतिका
(विधान–  चार पदों का एक सम-मात्रिक छंद. प्रति पंक्ति 26 मात्राएँ होती हैं तथा प्रत्येक पद 14-12 अथवा  12-14 मात्राओं की यति के अनुसार होते हैं. पदांत में लघु-गुरु होना अनिवार्य है. इसके हर पद की तीसरी, दसवीं, सतरहवीं और चौबीसवीं मात्राएँ लघु हों तो छन्द की गेयता सर्वाधिक सरस होती है.)

    बेटियाँ गंगा नदी सी, पाप सारे धो रहीं।   
   झेलतीं संताप अनगिन, अस्मिता भी खो रहीं ।।   
वेद मन्त्रों की ऋचाएँ, बेटियाँ ही भक्ति हैं।
चेतना सामर्थ्य दात्री, बेटियाँ ही शक्ति हैं।१।

नारियों को पूजते थे, देवियों के रूप में।
देवता भी देखते थे, स्वर्ग के प्रारुप में।।
घूमते निर्द्वंद्व  हो के, आततायी देश में।
माँगती है न्याय बेटी, निर्भया के वेश में।२।

  कामियों के आज हाथों, लाज बेटी खो रही ।   
   भ्रूण हत्या कोख में  ही, बेटियों की हो रही ।।  
यातना का दर्द सारा, नर्क का परिवेश है।
लुप्त होती बेटियाँ औ, सुप्त सारा देश है।३।

                      - सत्यनारायण सिंह 

Sunday 15 June 2014

नेता सारे खेलते




कुण्डलिया छंद



नेता सारे खेलते
सारे नेता खेलते, आज चुनावी खेल।
सत्ता के इस रूप में, द्रुपद सुता का मेल।।
द्रुपद सुता का मेल, पांडु सुत लगती जनता।
नेता शकुनी दाँव, चाल वादों की चलता।
लोक लुभावन खूब, लगाते ये हैं नारे।
चौसर बिछी बिसात, खेलते नेता सारे।१।

हांथी तीर कमान तो,कहीं हाँथ का चिन्ह।
कमल घडी औ साइकिल,फूल पत्तियाँ भिन्न।।
फूल पत्तियाँ भिन्न,दराती कहीं हथोडा।
झाड़ू रही बुहार,उगा सूरज फिर थोडा।।
देख चुनावी रंग, ढंग अपनाता साथी।
मर्कट सा व्यवहार,करे सर्कस का हांथी।२।

नोटा बटन दबाइये, सेवक हों ना योग्य।
वोट उसे ही दीजिये, चुन प्रत्याशी योग्य।।
चुन प्रत्याशी योग्य, कुशल कर्मठ विश्वाशी।
सेवाभावी अंग, प्रशासक गुण अनुशाशी।।
कहता सत्य पुकार,चले ना सिक्का खोटा
करिये सफल प्रयोग, विफल ना होगा नोटा।३।

            - सत्यनारायण सिंह